प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis in Hindi)

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प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)

प्रकाशसंश्लेषण जीवों में होने वाली वह प्रक्रिया है। जिसमें सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बनिक यौगिकों के रूप में बदला जाता है।
प्रकाश संश्लेषण एक एनाबॉलिक तथा ऊष्माशोषी अभिक्रिया है। इसमें प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदला जाता है।

प्रकाश संश्लेषण का इतिहास (History of photosynthesis)

स्टीफन हेल्स

इनको प्लांट फिजियोलॉजी का जनक कहा जाता है। ने कहा कि पौधे अपना भोजन वायु तथा प्रकाश से प्राप्त करते हैं।

जोसेफ प्रीस्टले

इन्होंने कहा कि पौधे वायु को शुद्ध करने का कार्य करते हैं।

जॉर्ज इंजन हाउस

इनके अनुसार पौधों के द्वारा वायु का शुद्धिकरण सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में होता है।

सीनेबियर तथा सॉसर

इनके अनुसार प्रकाश संश्लेषण में CO2 का उपयोग तथा O2 का निष्कासन होता है।

जूलियस रोबर्ट मेयर

इनके अनुसार प्रकाश की विकिरण ऊर्जा को पौधों के द्वारा रासायनिक ऊर्जा में बदला जाता है।

जूलियस वॉन सेक्स

इनके अनुसार प्रकाश संश्लेषण का प्रथम उत्पाद स्टार्च होता है।

प्रकाश संश्लेषण के लिए स्थल (Site for photosynthesis)

प्रकाश संश्लेषण पादप के हरे भागो की कोशिकाओं में पाए जाने वाले क्लोरोप्लास्ट के कारण होता है।
क्लोरोप्लास्ट एक दोहरी झिल्ली आबंध कोशिकांग है।जिसमें दो झिल्लियां क्रमशः बाहरी झिल्ली तथा आंतरिक झिल्ली पाई जाती है। दोनों झिल्लियों के मध्य अंतर झिल्लिकामय अवकाश या परिप्लास्टिडियल अवकाश होता है। आंतरिक झिल्ली  से घिरा हुआ भाग स्ट्रोमा कहलाता है।
स्ट्रोमा में 70s राइबोसोम, वृत्ताकार डीएनए, आवश्यक एंजाइम पाए जाते हैं। इनके अलावा स्ट्रोमा में एकल झिल्ली से बनी हुई संरचना थाईलेकॉइड पाई जाती है बहुत सारे थाईलेकॉइड आपस में मिलकर ग्रेना का निर्माण करते हैं।

थाईलेकॉइड की झिल्ली में प्रकाश संश्लेषण की प्रकाश अभिक्रिया संपन्न होती है, जबकि स्ट्रोमा में अप्रकाशिक अभिक्रिया संपन्न होती है। थाईलेकॉइड की झिल्ली में क्वांटासोम पाए जाते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण वर्णको से बने होते हैं, इनको प्रकाश संश्लेषण की इकाई कहा जाता है।

प्रकाश संश्लेषी वर्णक (Photosynthetic pigment)

जीवों में तीन प्रकार के प्रकाश संश्लेषी वर्णक पाए जाते हैं-

  1. क्लोरोफिल
  2. कैरोटीनॉइड
  3. फाइकोबीलिंस

क्लोरोफिल (Chlorophill)

यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा मैग्नीशियम से बना हुआ वर्णक है, जो सूर्य के प्रकाश को अवशोषण करने का कार्य करते हैं।
क्लोरोफिल पांच प्रकार के होते हैं जिनको a,  b, c, d, e कहा जाता है क्लोरोफिल की संरचना में चार पोरफाइरिन वलय तथा एक फायटोल श्रृंखला होती है।

कैरोटीनॉइड (Caretinoids)

यह वसा में घुलनशील होने के कारण इनको लाइपोगक्रोम भी कहा जाता है। यह सहायक वर्णक होते हैं। यह क्लोरोफिल अणु की प्रकाशीय ऑक्सीकरण से  सूरक्षा करते हैं। यह सूर्य के प्रकाश का अवशोषण करके उसका स्थानांतरण क्लोरोफिल ए को करते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं-

कैरोटीन (Carotene)

यह नारंगी लाल रंग के वर्णक है यह सामान्यतः लाइट आ गई सभी पौधों में पाए जाते हैं। जैसे कैरोटीन, अल्फा बीटा गामा डेल्टा आदि

लाइकोपिन

यह लाल रंग का वर्णन है, जो टमाटर तथा लाल मिर्च में पाया जाता है,

कैरोटीन

बी गाजर का काला लाल वर्णक है

जैंथोफिल (Xanthophill)

यह पीले रंग का वर्णक है। यह ल्यूटिन यह पतियों के पीले रंग का कारण बनता है।

फ्यूकोजैन्थिन (Pheucoxanthene)

फाइकोबीलिंस (Phycobilins)

यह शैवालों में पाए जाने वाले प्रकाश संश्लेषी वर्णक है यह दो प्रकार के होते हैं।

फाइकोइरीथ्रिन (Phycoerythrin)

यह लाल शैवालों में पाया जाता है।

फाइकोसायनिन (Phycocyanin)

यह नील-हरित शैवालों में पाया जाता है।

प्रकाश की प्रकृति (Nature of light)

प्रकाश द्वैत प्रकृति दर्शाता है। यह विद्युत चुंबकीय तरंग तथा कणीय (Electromagnetic waves and particles) दोनों प्रकार की प्रकृति दर्शाता है।
विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में इनमें निश्चित तरंगदैर्ध्य पाई जाती है। दो लगातार श्रृंग अथवा गर्त के बीच की दूरी को तरंगदैर्ध्य कहते हैं। छोटी तरंगदैर्ध्य वाली तरंगों की ऊर्जा अधिक होती है।‌
प्रकाश संश्लेषण में दृश्य प्रकाश का ही उपयोग होता है। जिन की तरंग दैर्ध्य 390nm-760nm होती है जिसके अंतर्गत बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल प्रकाश सम्मिलित है।
यह ध्यान देने योग्य है। कि हरे प्रकाश पर प्रकाश संश्लेषण नहीं होता क्योंकि हरे प्रकाश का अवशोषण पतियों द्वारा नहीं हो पाता। यह उनको परावर्तित कर देती है।
कणीय  प्रकृति के रूप में प्रकाश छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है। जिन्हें फोटोन कहा जाता है। एक फोटोन में निहित ऊर्जा को क्वांटम कहते हैं।
CO2 एक अणु का स्थिरीकरण करने के लिए 8 फोटोन की आवश्यकता होती है। यानी हम कह सकते हैं, कि ऑक्सीजन के एक अणु को मुक्त करने के लिए 8 फोटोन की आवश्यकता होती है। प्रकाश संश्लेषण में अवशोषित प्रकाश के प्रति क्वांटम से निष्कासित ऑक्सीजन के अणुओं की संख्या को क्वांटम प्राप्ति (Quantum Yeild) कहा जाता है।

प्रकाश तंत्र या लाइट हार्वेस्टिंग सिस्टम (Photo system or light harvesting system)

पादपों में दो प्रकार प्रकार का प्रकाश तंत्र पाया जाता है, जिन्हें प्रकाश तंत्र I तथा प्रकाश तंत्र II कहते हैं।
प्रकाश तंत्र I में क्लोरोफिल ए पाया जाता है,  जो 700mm वाले प्रकाश का अवशोषण करता है। यह चक्रीय तथा अचक्रीय फास्फोराइलेशन दोनों में भाग लेता है।
प्रकाश तंत्र II
इसमें क्लोरोफिल ए पाया जाता है जो 760mm वाले प्रकाश का अवशोषण करता है। यह केवल अचक्रीय फास्फोराइलेशन में भाग लेता है। बहुत सारे प्रकाश संश्लेषी वर्णक आपस में जुड़ कर संरचना का निर्माण करते हैं। जो प्रकाश तंत्र में पाई जाती है, इनको एंटीना अणु कहा जाता है। इस एंटीना अणु के केंद्र में अभिक्रिया केंद्र होता है।जिसमें क्लोरोफिल ए उपस्थित होता है।

सभी प्रकाश संश्लेषी वर्णक सूर्य के प्रकाश का अवशोषण करके क्लोरोफिल ए ही ओर स्थानांतरित करते हैं।क्लोरोफिल ए सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करके इलेक्ट्रॉन का निष्कासन करता है।

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया विधि (Method of photosynthesis)

प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया 2 चरणों में संपन्न होती है-

  1. प्रकाशिक अभिक्रिया
  2. अप्रकाशिक अभिक्रिया

प्रकाशिक अभिक्रिया (Dark Reaction)

इसे प्रकाशीय फास्फोरीलीकरण भी कहा जाता है। यह इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र होता है। इसके दौरान NADP का अपचयन तथा ATP का निर्माण होता है, और ऑक्सीजन का निष्कासन होता है।
यह दो प्रकार की होती है-

चक्रीय फास्फोरीलीकरण (Cyclic Phosphorylation)

इस इलेक्ट्रॉन परिवहन में केवल प्रकाश तंत्र I ही काम आता है।‌
प्रकाश तंत्र I  700 nm ऊर्जा का अवशोषण करके दो इलेक्ट्रॉन का त्याग करता है, यह इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन प्राथमिक ग्राही द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं। इसके पश्चात ये क्रमशः फेरोडोक्सीन, प्लास्टोक्यूनोन, साइटोक्रोम b6, साइटोक्रोम f और अंत में प्लास्टोसायनिन से  PS-I पास पुनः पहुंच जाते हैं।

source – doubtnut.com

जब इलेक्ट्रॉन प्लास्टोक्यूनोन से साइटोक्रोम b6 के पास जाता है और साइटोक्रोम b6 से साइटोक्रोम f के पास जाता है। तो ATP का निर्माण होता है।
इस प्रकार चक्रीय फॉस्फोरीलीकरण में ATP के दो अणु का निर्माण होता है।

अचक्रीय फॉस्फोरीलीकरण (Non-cyclic Phosphorylation)

इस इलेक्ट्रॉन परिवहन में प्रकाश तंत्र-I तथा II दोनों काम आता है।
प्रकाश तंत्र- II द्वारा 680nm वाले प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण किया जाता है। जिससे वह दो इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं। यह प्राथमिक ग्राही द्वारा ग्रहण कर लिये जाते है।
प्राथमिक ग्राही से यह है, प्लास्टोक्यूनोन, साइटोक्रोम b6, साइटोक्रोम f और अंत में प्लास्टोसायनिन से होता हुआ प्रकाश तंत्र- II  में पहुंचता है।
प्रकाश तंत्र- II 700nm वाले प्रकाश का अवशोषण करता है। और दो इलेक्ट्रॉन का त्याग कर देता है ये इलेक्ट्रॉन प्राथमिक ग्राही द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं। और प्राथमिक ग्राही से फेरोडोक्सीन के पास जाते हैं फेरोडोक्सीन इलेक्ट्रॉन को NADP रिडक्टेज एंजाइम को देता है जो NADP को NADPH2  में बदल देता है।

source – zigya.com

इस दौरान जब इलेक्ट्रॉन साइटोक्रोम b6 से f के पास जाते हैं तो ATP के अणु का भी निर्माण होता है।
प्रकाश तंत्र-I अपने इलेक्ट्रॉन की कमी पूरी करने के लिए जल के अणु का अपघटन करता है। जिसे जल का प्रकाशिक अपघटन कहते हैं। इस दौरान ऑक्सीजन का निष्कासन होता है। यह ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण के दौरान निकलने वाली ऑक्सीजन होती है।

अप्रकाशिक अभिक्रिया (Light Reaction)

केल्विन चक्र (Calvin Cycle)

इसको C3 चक्र, केल्विन-बेन्सन चक्र भी कहा जाता है क्योंकि इसमें प्रथम उत्पाद फास्फोग्लिसरीक एसिड बनता है।
केल्विन चक्र को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-

  1. कार्बॉक्सिलीकरण
  2. ग्लाइकोलाइटिक उत्कर्मण
  3. RuBP का पुनःर्निर्माण

कार्बॉक्सिलीकरण
CO2 का प्रथम ग्राही RuBP होता है।
RuBP CO2 के अणुओं से जुड़कर 3-3 कार्बन के दो अणु  3-फास्फोग्लिसरीक एसिड में अपघठित हो जाता है।
यह 3-फास्फोग्लिसरीक एसिड ATP से फास्फेट प्राप्त करके 1,3- डाई फास्फोग्लिसरीक एसिड बनाता है।
1,3- डाई फास्फोग्लिसरीक एसिड NADPH2 से अपचयित होकर 3-फास्फोग्लिसरेल्डीहाइड बनाता है।


 

हैच व स्लैक चक्र (Hatch and slack cycle)

इस चक्र की खोज हैच तथा स्लैक के द्वारा की गई।
इसमें प्रथम उत्पाद चार कार्बन युक्त ऑक्जेलो एसिटिक एसिड बनता है, इसलिए इसको C4 चक्र कहते हैं। यह एक बीजपत्री पादपों में सामान्यतया समोदभिद पौधों में पाया जाता है। जैसे गन्ना, मक्का, सरगम आदि।
C4 पादपों में संवहन बंडल के चारों ओर मृदुतकी कोशिकाओं का एक चक्र पाया जाता है। जिसे पुलाच्छद या  बंडल सीथ कहा जाता है।
इनकी कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट आकार में बड़ा होता है लेकिन इनमें ग्रेना का अभाव होता है। इनके अतिरिक्त सभी मिजोफील की कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट संख्या में अधिक आकार में छोटे होते हैं।
C4 चक्र की क्रियाविधि (mechanism of C4 cycle)
वायुमंडल से कार्बन डाइ ऑक्साइड को ग्रहण करके मिजोफील की कोशिकाओं के क्लोरोप्लास्ट में CO2 फॉस्फिइनॉलपायरूविक अम्ल के साथ में जोड़ा जाता है।इसके लिए PEPCO एंजाइम काम आता है जिसको फॉस्फिइनॉलपायरूवेट कार्बोक्सिलेज ऑक्सीजिनेज कहा जाता है।
इससे चार कार्बन युक्त ऑक्जेलोएसिटिक अम्ल (OAA) बनता है।
ऑक्जेलो एसिटिक अम्ल का NADPH2 से अपचयन होने पर मेलिक अम्ल का निर्माण होता है।
यह मेलिक अम्ल मिजोफील की कोशिकाओं से निकलकर बंडल शीथ की कोशिकाओं में चला जाता है। जहां पर इससे कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन होता है, NADP‌ NADPH2 में बदल जाता है।
मुक्त होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड केल्विन चक्र में काम आती है।‌
मेलिक अम्ल से CO2 निकलने पर पायरूविक अम्ल बनता है यह पायरूविक अम्ल में पुनः मिजोफिल की कोशिकाओं में चला जाता है। जहां पर यह एटीपी से फॉस्फेट प्राप्त करके फॉस्फिइनॉलपायरूविक अम्ल बना लेता है।
C4 पादपों में C3 की अपेक्षा CO2 के स्वांगिकरण की दर अधिक होती है। इन में प्रकाशीय श्वसन नहीं होता C4 पौधे वायुमंडलीय दबाव के लिए अधिक अनुकूलित होते हैं।
 

क्रेसुलेशियन अम्ल उपापचय (CAM- Cressulacian acid metabolism)

यह पथ टिंग द्वारा खोजा गया यह मांसलोदभिद पादपों में पाया जाता है। जैसे कैक्टस, सिड्रस, ओपेनशीया। इन पौधों में वाष्पोत्सर्जन को कम करने के लिए तथा पानी की हानि को रोकने के लिए दिन के समय रंध्र बंद रहते हैं, और रात के समय खुलते हैं।
रंध्र रात के समय खुलकर कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर लेते हैं, जो C4 चक्र में काम आता है। C4 चक्र से कार्बन डाइऑक्साइड मुक्त होकर C3 चक्र में चली जाती है। और का ग्लूकोज का निर्माण होता है।
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