लघुबीजाणुजनन तथा परागकण (Microsporogenesis and Pollen Grain)
लघुबीजाणुजनन (Microsporogenesis)
परागमातृ कोशिका (Pollen mother cell) से लघुबीजाणु (Microspore) बनने की प्रक्रिया लघुबीजाणुजनन (Microsporogenesis) कहलाती है।
पुष्प के बनने के समय जब पुंकेसर बन रहा होता है । तो इनकी लघुबीजाणुधानियों में बीजाणुजन उत्तक (sporogenous tissue) पाये जाते है । इन बीजाणुजन उत्तक (sporogenous tissue) में परागमातृ कोशिकाएँ (PMC) होती है।
परागमातृ कोशिकाओं (PMC) में अर्द्धसूत्री विभाजन से चार अगुणित लघुबीजाणु (n, Microspore) बनते है। जो एक साथ एक ही भिती में व्यवस्थित होते है। जिसे लघुबीजाणु चतुष्क (tedrad) कहते है।
लघुबीजाणु चतुष्क (tedrad) की भित्ति कैलोज नामक होता है, जिससे दो कोशिका युक्त (कायिक व जनन कोशिका) परागकण (Pollen) का निर्माण होता है।
परागकण का स्फुटन (Dehisence of Pollen Grain)
यह नर युग्मकोद्भिद (male gamete) होता है। यह गोलाकार तथा इसका व्यास 25-50mm होता है। यह बाहरी भित्ति (outer layer) है। यह कठोर व स्पोरोपोलेनिन (sporopolllenin) की बनी होती है। यह आंतरिक भित्ति (inner layer) है। यह पतली व सतत (Continous) होती है। यह से दो नर युग्मक (male gamete) बनते है। जो दोहरे निषेचन में भाग लेते है। परागकण पोषक पदार्थ युक्त होते है। इसका उपयोग कार्यक्षमता वृद्धक दवाइयाँ बनाने में किया जाता है। जिन्हें पराग उत्पाद कहते है। Keywords लघुबीजाणुजनन तथा परागकण, Microsporogenesis and Pollen Grain लघुबीजाणुजनन तथा परागकण, Microsporogenesis and Pollen Grain परागकण (Pollen grain)
परागकण में दो भित्तियाँ (layer) होती है। जिनको चोल कहते हैं-
बाह्यचोल (Exin)
स्पोरोपोलेनिन (Sporopollenin) एक कार्बनिक पदार्थ है जो उच्च तापमान , अम्लों व क्षारको के प्रति अधिक प्रतिरोधी होता है। इसका पाचन करने वाला एंजाइम अभी तक खोजा नहीं गया है।
बाह्यचोल असतत (Discontinous) होती है। इस पर कुछ छिद्र (pore) पाए जाते है। जिन्हें जनन छिद्र (germinal pore) कहते है। इस पर स्पोरोपोलेनिन अनुपस्थित है ।अन्तचोल (Intine)
पराग उत्पाद(pollen product)
घोड़ो व एथलीट की कार्यक्षमता बढ़ाने के लीए पराग उत्पादो का प्रयोग करते है।
परागकण में उपस्थित
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